Dhruv Ki Kahani (Motivational Story): Ek Balak Ka Atut Sankalp

एक समय की बात है, प्राचीन काल में, उत्तानपाद नामक एक प्रतापी राजा थे। उनकी दो रानियाँ थीं – सुरुचि, जो उन्हें अधिक प्रिय थीं, और सुनीति, जो उनकी पहली रानी थीं पर जिन्हें राजा का उतना स्नेह नहीं मिलता था। रानी सुनीति का एक पुत्र था, जिसका नाम ध्रुव था – एक अत्यंत ही शांत, भोला और जिज्ञासु बालक।
एक दिन, बालक ध्रुव खेलते-खेलते राजमहल में अपने पिता के पास जा पहुँचा। उसने देखा कि राजा उत्तानपाद अपनी प्रिय रानी सुरुचि के पुत्र उत्तम को अपनी गोद में बिठाकर प्यार कर रहे थे। ध्रुव के बाल मन में भी पिता का वही स्नेह पाने की इच्छा जागी। वह भी दौड़कर अपने पिता की गोद में बैठना चाहता था।

जैसे ही ध्रुव ने राजा की गोद में बैठने का प्रयास किया, रानी सुरुचि ने उसे तीखे शब्दों में रोक दिया। वह बोलीं, “अरे बालक! तुम इस गोद में नहीं बैठ सकते। यह राजगद्दी केवल मेरे पुत्र उत्तम के लिए है। यदि तुम्हें राजा की गोद में बैठना है, तो अगले जन्म में मेरे गर्भ से जन्म लेना होगा!” रानी सुरुचि के शब्द तीरों की तरह ध्रुव के हृदय में जा लगे। एक छोटे से बालक के लिए यह अपमान असहनीय था। उसके कोमल हृदय पर इतनी गहरी चोट लगी कि उसकी आँखों में आँसू भर आए।
ध्रुव दौड़ता हुआ अपनी माँ सुनीति के पास पहुँचा और रोते हुए सारी घटना सुनाई। माँ सुनीति का हृदय अपने पुत्र का दुःख देखकर टूट गया, पर वह स्वयं शक्तिहीन थीं। उन्होंने ध्रुव को गले लगाया और शांत करते हुए बोलीं, “पुत्र! चिंता मत करो। इस दुनिया में एक ही सत्ता है जो सभी को गोद में बिठा सकती है – वह हैं भगवान विष्णु। यदि तुम्हें सच्ची शक्ति और सम्मान चाहिए, तो उन्हीं की शरण में जाओ। वही तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर सकते हैं।”

माँ के ये शब्द ध्रुव के हृदय में घर कर गए। उस नन्हे से बालक ने उसी क्षण अटूट संकल्प कर लिया कि वह भगवान विष्णु को प्राप्त करके ही रहेगा। उसने संकल्प लिया कि वह एक ऐसे स्थान को प्राप्त करेगा, जहाँ से उसे कोई हटा न सके, कोई उसका अपमान न कर सके। यह कोई साधारण बालक का संकल्प नहीं था, यह असीम दृढ़ता का परिचय था।
बिना किसी को बताए, ध्रुव ने राजमहल छोड़ दिया और घने जंगल की ओर चल पड़ा। वह जानता भी नहीं था कि भगवान विष्णु कहाँ मिलेंगे या उनकी तपस्या कैसे की जाती है। जंगल में उसकी मुलाकात देवर्षि नारद से हुई। नारद मुनि ने जब एक छोटे से बालक को इतनी कठोर प्रतिज्ञा लेते देखा, तो वे चकित रह गए। उन्होंने ध्रुव को समझाया कि यह मार्ग बहुत कठिन है, पर ध्रुव अपने निर्धारित लक्ष्य से एक इंच भी डिगने को तैयार नहीं था।

नारद मुनि ने ध्रुव के दृढ़ निश्चय को देखकर उसे “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उपदेश दिया और तपस्या करने की विधि समझाई। ध्रुव ने यमुना नदी के किनारे जाकर घोर तपस्या आरंभ कर दी। पहले महीने उसने केवल फल-फूल खाकर तपस्या की। दूसरे महीने सूखे पत्ते खाए। तीसरे महीने केवल जल पर रहा। और चौथे महीने तो उसने वायु का भी त्याग कर दिया, पूरी तरह से श्वास रोककर ध्यान में लीन हो गया।
उसकी एकाग्रता शक्ति इतनी प्रबल थी कि उसके चारों ओर एक दिव्य तेज फैलने लगा। उसकी तपस्या की शक्ति से तीनों लोक काँप उठे। देवता भी चिंतित हो गए। भगवान विष्णु, जो अपने भक्तों पर सदा कृपा करते हैं, ध्रुव के अटूट संकल्प और परिश्रम से अत्यंत प्रसन्न हुए।

भगवान विष्णु अपने दिव्य रूप में ध्रुव के सामने प्रकट हुए। ध्रुव ने जब भगवान के तेजोमय स्वरूप को देखा, तो उसकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली। वह उन्हें प्रणाम करने के लिए झुका, पर प्रसन्न भगवान ने उसे उठाया और कहा, “हे बालक ध्रुव! मैं तुम्हारी अटूट भक्ति और दृढ़ता से बहुत प्रसन्न हूँ। माँ सुरुचि के वचनों ने तुम्हें जिस अपमान का अनुभव कराया, मैं तुम्हें उस सबसे ऊँचा स्थान देता हूँ।”
भगवान विष्णु ने ध्रुव को आशीर्वाद दिया कि वह स्वर्ग में जाकर ‘ध्रुव तारे’ के रूप में सदा के लिए स्थापित होगा। वह तारा ब्रह्मांड में एक अटल और स्थिर बिंदु होगा, जिसे कोई भी कभी भी उसके स्थान से नहीं हटा पाएगा। आज भी, हम रात के आकाश में ध्रुव तारे (The North Star) को देखते हैं, जो हमें दिशा दिखाता है और स्थिरता का प्रतीक है।

कहानी से मिलने वाली सीख (Moral of the Story)
- अटूट संकल्प (Unwavering Determination): ध्रुव की कहानी सिखाती है कि यदि हमारा संकल्प सच्चा और दृढ़ हो, तो हमें दुनिया की कोई भी शक्ति अपने लक्ष्य से विचलित नहीं कर सकती।
- एकाग्रता और दृढ़ता (Concentration & Persistence): किसी भी बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गहन एकाग्रता और निरंतर प्रयास (Persistence) आवश्यक है। ध्रुव ने अपनी तपस्या में यही गुण दिखाए।
- इच्छाशक्ति की शक्ति (Power of Willpower): ध्रुव ने दिखाया कि उम्र या आकार मायने नहीं रखता; यदि इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो असंभव भी संभव हो सकता है।
- सच्ची शक्ति भीतर है (True Power is Within): बाहर के अपमान या परिस्थितियों से लड़ने के बजाय, ध्रुव ने अपनी आंतरिक शक्ति को जगाया और वह स्थान प्राप्त किया जिसे कोई छीन नहीं सकता।
- लक्ष्य पर अडिग रहें (Stay Focused on Goals): भले ही रास्ता कठिन लगे, पर अपने लक्ष्य पर अडिग रहना ही सफलता की कुंजी है।
ध्रुव की कहानी हमें प्रेरणा देती है कि जीवन में चाहे कितनी भी बाधाएँ आएं, अपने अटूट संकल्प और लगन से हम अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। बस अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें और कभी हार न मानें!